ਪੰਨਾ:Alochana Magazine April, May, June 1982.pdf/63

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82. काव्यशोभाकरान् धर्मानलंकारान् प्रचक्षते ।। -दण्डी : काव्यादर्श : 2. 1. 83. तदेतत्काव्य सर्वस्वं समाधिर्नाम यो गुणः ।। -दण्डी : वही 1.100 84. कामं सर्वोऽप्यलंकारो रसमर्थे निषिचति । तथाप्यग्राम्यतेवे ने भार वहति भूयसा ।। -दण्डी : वही, 1:62 85. डा. वेंकट शर्मा : काव्यसर्जना और काव्यास्वाद, पृष्ठ 281, दिल्ली, 1973 86. डा. शोभाकान्त मिश्र : अलंकार धारणा : विकास और विश्लेषण, पृष्ठ 9-10 87. 'काव्य शोभाया कर्तारो धर्मागुणाः' -वामनः काव्यालंकार सूत्र, पृष्ठ 3.1.1. 88. उद्भटादिभिस्तु गुणालंकाराणाम् प्रायशः साम्यमेव सूचितम् । विषयमात्रेण भेदप्रतिपादनात् । संघटनाधर्मत्वेन शब्दार्थ धर्मत्वेन चेष्टेः ।।। - रूप्यकः अलंकार सर्वस्व पृष्ठ 7 89. वक्रोक्तिरेव वैदग्ध्य भंगी भणितिरूच्यते । –कुन्तक : वक्रोक्ति जीवितं, 1.10 90. उचितं प्राहराचार्याः सदश किलयस्य यत् । -क्षेमेन्द्र : औचित्य विचार चर्चा, 7 91. वही, पृष्ठ 186 92. आनन्दवर्धन : ध्वन्यालोक कारिका, 39 93 मम्मट : काव्य प्रकाश 8.67. देखें अंक 53 94. विश्वनाथ : साहित्यदर्पण 10.1. देखें अंक 54 95. महिमभट्ट : व्यक्तिविवेक, 2.14. डा. सत्यदेव चौधरी : भारतीय काव्यशास्त्र, पृष्ठ 359 पर