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उद्धृ आचार्य रामचन्दं शुक्ल का विचार । हिन्दी साहित्य का इतिहास, रीतिकाल, पृष्ठ 23. 97. "रीतिरात्मा काब्यस्य'–वामनः काब्यालंकार सूत्र वृति, 1.2.6. 98. देखें उक्त अंक 89 99. डा. सत्यदेव चौधरी, देखें उक्त अंक 96 100. डा. शोभा कान्त मिश्र, देखें उक्त अन्क 86, पृष्ठ 18 101. वही, पृ. 19. 102. देखें, अंक 75. क्रोचे की धारणा। 103. कविर्मनीषो परिभू : स्वयंभूः, ईशावास्योपनिषद्, 8. 104. निरूपादान सम्भारमभित्तावेव तन्वते ।। जगच्चित्रं नमस्तस्मै कला श्लाघाय शूलिने ।। -नारायण भट्ट, स्तवचिन्तामणि, अलकार-धारणा : विकास और विश्लेषण, पृ. 21, पर उद्धृत । 105. डा. शोभा कान्त मिश्र : अलंकार धारणा : विकास और विश्लेषण, पृ. 21, 106. वही, पृ. 22-23. 30